बजट 2023-24 में स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार को लेकर विशेषज्ञों में बड़ी आशा है। बजट पेश करते हुए केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने बड़ी घोषणा करते हुए साल 2047 तक देश को एनीमिया मुक्त करने का लक्ष्य रखा है। वित्तमंत्री ने कहा कि इसके अलावा मुख्य स्थानों पर 157 नए नर्सिंग कॉलेज स्थापित किए जाएंगे।
नई दिल्ली: एनीमिया, भारत में वर्षों से गंभीर स्वास्थ्य समस्या कारक स्थिति रही है, महिलाओं में इसका खतरा अधिक देखा जाता रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक 15-49 आयु वर्ग वालों में देश की 57 प्रतिशत महिलाओं और 25 प्रतिशत पुरुषों को एनीमिया है। 15 साल से कम आयु की 46 फीसदी लड़कियां एनीमिया की शिकार हैं। आइए इस समस्या के बारे में समझते हैं और जानते हैं कि 2047 तक देश को एनीमिया मुक्त करने के लक्ष्य में क्या-क्या चुनौतियां हो सकती हैं?
एनीमिया के बारे में जानिए
सरल भाषा में समझें तो एनीमिया शरीर में खून की कमी को संदर्भित करती है। एनीमिया में आपके शरीर के ऊतकों में ऑक्सीजन ले जाने के लिए पर्याप्त स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाओं की कमी हो जाती है। एनीमिया को हीमोग्लोबिन की कमी के रूप में भी जाना जाता है। आहार में पर्याप्त आयरन और विटामिन डी की कमी को इसका प्रमुख कारण माना जाता रहा है।
क्यों होती है एनीमिया?
आहार में आयरन, विटामिन बी-12, फोलेट और कॉपर वाली चीजों की कमी एनीमिया के खतरे को बढ़ा देती है। इसके अलावा कुछ अंतर्निहित स्वास्थ्य समस्याएं जैसे आंतों की बीमारी वाले लोगों में भी इसका जोखिम अधिक होता है। आंतों की बीमारी जैसे क्रोहन डिजीज और सीलिएक डिजीज जैसी स्थितियों में शरीर में पोषक तत्वों का अवशोषण प्रभावित हो जाता है, यह आपमें एनीमिया के खतरे को बढ़ा देती है। इसके अलावा मासिक धर्म के दौरान उनमें खून की कमी होने और इसके अनुपात में पोषक तत्वों का सेवन न करने के कारण महिलाओं में इसका जोखिम अधिक रहता है।
एनीमिया से मुकाबले की चुनौतियां
एनीमिया को लेकर जिस प्रकार का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, वह बेहतर पहल है। एक अनुमान के मुताबिक देश में हर दो में से एक महिला एनीमिया से पीड़ित है। देश को एनीमिया से मुक्त करने के लिए जमीनी स्तर पर सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है। अब भी बड़ी आबादी, विशेषकर ग्रामीण महिलाओं को पर्याप्त पोषक तत्व नहीं मिल पा रहे हैं। इसमें ध्यान देने की आवश्यकता है। इसके लिए जागरूकता अभियानों पर और जोर देना होगा।