RSS राष्ट्रीय सेवा संगम: अच्छा कार्य भी बिना शक्ति के नहीं दिखता- मोहन भागवत

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जयपुर: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से जयपुर के केशव विद्यापीठ, जामडाेली में राष्ट्रीय सेवा संगम के दूसरे दिन आरएसएस के सर संघचालक माेहन भागवत ने निस्वार्थ सेवा और शक्ति पर बात की। भागवत ने कहा- संगठित कार्य शक्ति हमेशा विजयी रहती है। हम विश्व मंगल साधना के मौन पुजारी हैं। इसके लिए सामर्थ्य-सम्पन्न संघ शक्ति चाहिए, क्योंकि अच्छा कार्य भी बिना शक्ति के कोई मानता नहीं है, कोई देखता नहीं है। यह विश्व का स्वभाव है।

भागवत बाेले- सेवा का कार्य सात्विक होता है। फल की इच्छा नहीं रखकर किए जाने वाले कार्य सात्विक होते हैं। जो कार्य स्वार्थवश किए जाते हैं वे राजसी कार्य होते हैं। तामसिक कार्य भी होते हैं। ऐसा करने वाले अपना और दूसरों का भी नुकसान करते हैं।

असहमति पर भी कार्य सफल करना कार्यकर्ता का स्वभाव हो
भागवत ने कहा- हमें जय-जय नहीं करनी है और ना ही करानी है। जो सबने मिलकर तय किया उसको मानना और असहमत होते हुए भी कार्य सफल करना कार्यकर्ता का स्वभाव होना चाहिए। सेवा कार्य में जोश से ज्यादा होश की आवश्यकता रहती है। सेवा करते हैं तो अपने आप प्रसिद्धि मिलती है, लेकिन उस ओर ध्यान नहीं देना है।

पूरे उत्साह से कार्य करते हुए मन, वाणी और शरीर का तप हमें करना चाहिए। भागवत ने कहा- संघ की स्थापना तक डॉ. हेडगेवार ने भी बहुत सेवा कार्य किए। आपदा प्रबंधन भी किया। पीड़ितों की सेवा भी की। इसी का प्रतिबिंब संघ के कार्यक्रमों में आया और जगह-जगह होने वाले सेवा कार्यों को सेवा भारती के रूप में व्यवस्थित रूप दिया गया।

हमें काम करने वालों का बड़ा समूह खड़ा करना है
भागवत बोले- सेवा का लाभ सेवित और सेवक दोनों को होता है। सेवक निस्वार्थ बुद्धि से सेवा करते हैं। हमें विश्व मंगल के लिए काम करना है। इसलिए काम करने वालों का बड़ा समूह खड़ा करना है। उन्होंने कहा- सात्विक सेवा के पीछे अहंकार नहीं होता है। कई बार छोटी-छोटी बातों से बड़ी बातें बनती हैं। सात्विक प्रकृति का हमारा कार्य है, इसलिए सात्विक कार्यकर्ता बनाने पड़ेंगे। ऐसा करने में अहंकार आड़े नहीं आने देना है।

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