सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम् फैसला सुनाते हुए वर्ष 2016 में मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले को सही ठहराया है और कहा है कि निर्णय लेने की प्रक्रिया त्रुटिपूर्ण नहीं थी. पांच सदस्यीय बेंच ने इस मुद्दे पर 4:1 के बहुमत से फैसला दिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम् फैसला सुनाते हुए वर्ष 2016 में मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले को सही ठहराया है और कहा है कि निर्णय लेने की प्रक्रिया त्रुटिपूर्ण नहीं थी. आपको बता दें कि 8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विमुद्रीकरण (demonetization) के एक फैसले के तहत ₹1,000 और ₹500 के नोटों को चलन से बाहर कर दिया था. सरकार के इस फैसले के विरोध में सुप्रीम कोर्ट कई याचिकाएं दायर की गयी थी, जिस पर आज फैसला आया है.
जस्टिस एस ए नजीर के अध्यक्षता वाली बेंच ने दिया फैसला
जस्टिस एस ए नजीर अध्यक्षता वाली एक पांच सदस्यीय बेंच ने इस मुद्दे पर 4:1 के बहुमत से फैसला दिया है. सुप्रीमकोर्ट का यह फैसला सरकार के नोटबंदी के फैसले को चुनौती देने वाली 58 याचिकाओं की एक बैच पर आया है. साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि इस फैसले को उल्टा नहीं जा सकता और कहा कि सरकार द्वारा निर्णय लेने की प्रक्रिया में कोई त्रुटि नहीं है. सुप्रीमकोर्ट ने आगे कहा कि रिकॉर्ड जाँच से ऐसा लग रहा है कि 6 महीने की अंतिम अवधि के बीच RBI और केंद्र सरकार के बीच परामर्श हुआ था.
जस्टिस बी वी नागरत्ना ने फैसले के विरोध में दिया निर्णय
पांच इस सदस्यीय बेंच में केवल जस्टिस बी वी नागरत्ना ने नोटबंदी के फैसले के विरोध में अपना निर्णय सुनाया लेकिन अन्य चार जस्टिस ने सरकार के इस निर्णय के पक्ष में अपना फैसला सुनाया. जस्टिस बी वी नागरत्ना ने अपने निर्णय में कहा कि केंद्र सरकार के इशारे पर नोटबंदी करना कहीं अधिक गंभीर मुद्दा है और इसका असर इकॉनमी और जनता पर पड़ता है.
2016 में हुए डिमोनेटाइजेशन के फैक्ट्स
डिमोनेटाइजेशन के एक अहम् फैसले में सरकार ने 8 नवंबर 2016 को 500 रुपये और 1000 रुपये के नोटों को चलन से बाहर कर दिया था. पीएम मोदी ने ने टीवी पर 8:15 बजे एक प्रसारण में इस कदम की घोषणा की थी. इन नोटों का अर्थव्यवस्था की नकदी में चलन का 86% हिस्सा था. सरकार ने नागरिकों को बैंक खातों में पुराने नोट जमा कराने के लिए 30 दिसंबर 2016 तक का समय दिया था.