राजस्थान में ‘मिशन 2023’ को लेकर राजनीतिक पार्टियां चुनावी मोड में आकर जमीनी पकड़ मजबूत करने में जुट चुकी हैं. गहलोत वर्सेज पायलट के सियासी संग्राम के बीच बीजेपी कांग्रेस सरकार को घेरने की रणनीति बना रही है. दूसरी ओर सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट अलग-अलग ही सही, लेकिन इस बार कांग्रेस सरकार रिपीट होने के दावे करते नजर आते हैं.
Jaipur: इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव (Assembly Election) से लिए बिछ रही बिसात पर जयपुर संभाग सुर्खियों में है. राजधानी और बड़े नेताओं (Big Leaders) की चकाचौंध, धुरंधर राजनीति के अलावा यह संभाग अपने जिलों के अलग-अलग जातिगत बाहुल्य (Caste Dominated) और मिजाज के लिए जाना जाता है. राजधानी कई चुनावों से बीजेपी (BJP) का गढ़ रहा है, लेकिन पिछले चुनाव में कांग्रेस ने इस गढ़ में अच्छी-खासी सैंध लगाई. ऐसा माना जाता है कि जिसने जयपुर संभाग (Jaipur division) का गढ़ जीत लिया, राजस्थान (Rajasthan) की सत्ता में उसी का परचम बुलंद होता है.
ढूंढाड़ संभाग, जिसे जयपुर क्षेत्र के रूप में भी जाना जाता है, राजस्थान का एक ऐतिहासिक क्षेत्र है. इसमें जयपुर, दौसा, सवाई माधोपुर और टोंक और करौली जिले का उत्तरी भाग शामिल है. लेकिन जब हम बात संभाग की करते हैं तो इसमें जयपुर, दौसा, सीकर, अलवर और झूंझुनूं जिले आते हैं.
संभाग के सभी जिलों के वोटर के हैं अलग-अलग मिजाज
संभाग में राजनीतिक समीकरणों को अगर जिलेवार देखा जाए तो झुंझुनू जिले की राजनीति जाट समुदाय के इर्द-गिर्द ही घूमती है तो मीणा बहुल दौसा जिले में किरोड़ी लाल मीणा कद्दावर नेता हैं. पिछले चुनाव को छोड़ दें तो सीकर जिले में माकपा दोनों ही प्रमुख दलों को कुछ टक्कर देती रही है. वहीं अलवर जिले के सीमावर्ती होने, मेवात क्षेत्र में होने के चलते हिंदू-मुस्लिम राजनीति देखी जाती है. जयपुर जिले को देखा जाए तो यहां बहुसंख्यक मध्यमवर्ग के अपने ही मुद्दे हैं. जयपुर जिले में ब्राह्मण, राजपूत, मुस्लिम व वैश्यों के साथ अन्य जातियों के समीकरणों को संतुलित करके ही जीत मिल सकती है. राजनीतिक इतिहास की बात करें तो राजधानी जयपुर में भाजपा का पलड़ा भारी रहा है.
भाजपा को उसके गढ़ में बड़ा नुकसान झेलना पड़ा था
पिछले विधानसभा चुनाव की बात करें तो भाजपा को उसके गढ़ जयपुर संभाग में सबसे बड़ा नुकसान झेलना पड़ा. जयपुर संभाग की 50 सीटों में से कांग्रेस को 25, बीजेपी को 16 सीटें मिली हैं. सातों संभागों में भाजपा को 73 सीटें और कांग्रेस को 99 सीटें मिली हैं. बीजेपी को 2013 की तुलना में करीब 90 सीटों का नुकसान हुआ तो कांग्रेस को 78 सीटों का फायदा. हालांकि भाजपा को सभी संभागों में पिछले चुनावों के मुकाबले कम सीटें मिली, लेकिन सबसे कम नुकसान उदयपुर और कोटा संभाग में हुआ है. अजमेर संभाग में 13-13 सीटों से साथ कांग्रेस व भाजपा में मुकाबला बराबरी का रहा. भरतपुर संभाग में तो भाजपा को सिर्फ एक सीट मिल पाई.
शेखावाटी की सियासत की ही अलग बात
राजस्थान में शेखावाटी एक ऐसा क्षेत्र है, जहां चुनावों में किसानों के मुद्दों के साथ-साथ स्थानीय मुद्दे भी असर डालते हैं. ऐसा माना जाता है कि शेखावाटी का मतदाता देते समय केंद्रीय योजनाओं को नहीं, बल्कि स्थानीय प्रत्याशी को देखकर वोट देता है. जहां पूरे राजस्थान में कांग्रेस और बीजेपी के चुनाव चिह्न के सामने का बटन ज्यादा दबाया जाता है, वहीं शेखावाटी में उतना ही प्रभाव सीपीएम, बसपा, निर्दलीय उम्मीदवारों का भी होता है. अगर पिछले चार विधानसभा चुनावों की बात करें तो शेखावाटी की 25 फीसदी से अधिक सीटें अन्य पार्टियों की झोली में ही रही हैं. साल 2003 में 20 सीटों में से 4, 2008 में 21 में से 4 और साल 2013 में 21 में से 5 सीटें अन्य पार्टियों को मिली थीं. पिछले चुनाव में जरूर कांग्रेस की लहर रही और 21 में से सिर्फ दो सीटें बीजेपी, एक-एक सीट बसपा और निर्दलीय के खाते में गईं. बता दें कि जयपुर संभाग में शेखावाटी के सीकर और झुंझुनूं जिले ही आते हैं.
जयपुर संभाग के नेताओं की राज्य और देश में पहचान
इस संभाग में जयपुर के अलावा सीकर, झुंझुनू, अलवर, दौसा जिले हैं, जिनके कई नेताओं ने राज्य और देश में पहचान बनाई है. जयपुर संभाग को भैरोंसिंह शेखावत, हीरालाल शास्त्री और टीकाराम पालीवाल के रूप में तीन मुख्यमंत्री मिले. इनमें शेखावत सर्वाधिक 10 साल तक सत्ता में रहे और उपराष्ट्रपति भी बने. शास्त्री और पालीवाल को ढाई साल तक सत्ता में रहने का अवसर मिला. इनके अलावा गिरधारी लाल भार्गव, पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, नवल किशोर शर्मा, पूर्व बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी, सासंद रामचरण बोहरा, सांसद लालचंद कटारिया, महेश जोशी, पूर्व शिक्षा मंत्री घनश्याम तिवाड़ी, डॉ राजकुमार शर्मा, राजेन्द्र सिंह गुढ़ा, रामनारायण चौधरी और ब्रजेंद्र ओला आदि प्रमुख दलों के नेता हैं.