गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार दिए जाने की घोषणा, काँग्रेस क्यों कर रही बवाल? जानिए क्या है गीत प्रेस का इतिहास

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गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार दिए जाने की घोषणा के साथ ही इसको लेकर राजनीति शुरू हो गई है। कांग्रेस ने इस फैसले पर ही सवाल खड़े कर दिए। कांग्रेस की ओर से यह कहा गया कि यह फैसला एक उपहास है और सावरकर और गोडसे को पुरस्कार देने जैसा है। वहीं कांग्रेस की आलोचना पर बीजेपी ने भी पलटवार किया।

New Delhi: गांधी शांति पुरस्कार गीता प्रेस, गोरखपुर को प्रदान किया जाएगा। इस घोषणा के साथ ही इसको लेकर राजनीति भी शुरू हो गई है। कांग्रेस ने इस फैसले की तीखी आलोचना की है। कांग्रेस नेता की ओर से इसे उपहास बताया गया और इस फैसले पर सवाल खड़े किए गए। वहीं जब कांग्रेस ने इस फैसले की आलोचना की तो बीजेपी की ओर से भी जवाब दिया गया। एक के बाद एक कई बीजेपी नेताओं ने कांग्रेस पर हमला बोला। कांग्रेस की आलोचना के बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस फैसले पर कहा कि इस प्रतिष्ठित पुरस्कार से नवाजा जाना गीता प्रेस के भगीरथ कार्यों का सम्मान है। वहीं इस बीच गीता प्रेस की ओर से कहा गया है कि पुरस्कार स्वीकार है लेकिन धनराशि लेने से इनकार कर दिया है। इसके पीछे उनकी ओर से वजह भी बताई गई। साल 1923 में गीता प्रेस की शुरुआत हुई और यह दुनिया के सबसे बड़े प्रकाशकों में से एक है। आखिर इस घोषणा के बाद बवाल क्यों?

वर्ष 2021 के लिए गांधी शांति पुरस्कार गीता प्रेस, गोरखपुर को प्रदान किया जाएगा। गीता प्रेस को यह पुरस्कार अहिंसक और अन्य गांधीवादी तरीकों से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन की दिशा में उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया जाएगा। रविवार इसकी जानकारी दी गई। पीएम मोदी ने गीता प्रेस को पुरस्कार के लिए चुने जाने पर बधाई दी और क्षेत्र में उसके योगदान की सराहना की। पीएम मोदी ने ट्वीट करते हुए लिखा कि मैं गीता प्रेस, गोरखपुर को गांधी शांति पुरस्कार 2021 से सम्मानित किये जाने पर बधाई देता हूं। उन्होंने लोगों के बीच सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन को आगे बढ़ाने की दिशा में पिछले 100 वर्षों में सराहनीय कार्य किया है।

वर्ष 2021 के लिए गांधी शांति पुरस्कार, गीता प्रेस को दिए जाने की आलोचना कांग्रेस ने की है। कांग्रेस ने इस फैसले पर सवाल खड़े करते हुए इसे उपहास बताया। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने सोमवार कहा कि 2021 के लिए गांधी शांति पुरस्कार गोरखपुर में गीता प्रेस को प्रदान किया जा रहा है, जो इस वर्ष अपनी शताब्दी वर्ष मना रहा है। रमेश ने कहा अक्षय मुकुल ने 2015 में इस संस्थान की एक बहुत अच्छी जीवनी लिखी है। जिसमें उन्होंने इस संस्थान के महात्मा के साथ उतार-चढ़ाव वाले संबंधों और राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक एजेंडे पर उनके साथ चली लड़ाइयों का खुलासा किया गया है। कांग्रेस नेता ने कहा, यह फैसला वास्तव में एक उपहास है और सावरकर और गोडसे को पुरस्कार देने जैसा है।

नफरत क्यों, BJP ने शिवराज पाटिल के बयान की दिलाई याद
बीजेपी ने गीता प्रेस को पुरस्कार दिए जाने की आलोचना करने को लेकर सोमवार को कांग्रेस को आड़े हाथों लिया। बीजेपी ने आरोप लगाया कि विपक्षी पार्टी गीता प्रेस से इसलिए नफरत करती है क्योंकि वह सनातन का संदेश फैला रहा है। कांग्रेस नेता की टिप्पणी पर बीजेपी प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने कांग्रेस को हिन्दू विरोधी करार दिया और लोगों से सवाल किया कि गीता प्रेस पर उसके हमले से क्या कोई हैरान है। उन्होंने कहा कि गीता प्रेस को यदि एक्सवाईजेड प्रेस कहा जाता तो वे इसकी सराहना करते लेकिन चूंकि यह गीता है, इसलिए कांग्रेस को समस्या है। पूनावाला ने कहा कांग्रेस मुस्लिम लीग को धर्मनिरपेक्ष मानती है, लेकिन उसके लिए गीता प्रेस सांप्रदायिक है। जाकिर नाइक शांति का मसीहा है लेकिन गीता प्रेस सांप्रदायिक है। पूनावाला ने कांग्रेस नेता और पूर्व राज्यपाल शिवराज पाटिल के उस विवादित बयान का भी जिक्र किया जिसमें उन्होंने दावा किया था कि लव जिहाद की बात सिर्फ इस्लाम में ही नहीं है, बल्कि ये भगवद् गीता और ईसाई धर्म में भी हैं।

गीता प्रेस की कब हुई शुरुआत, सम्मान स्वीकार लेकिन 1 करोड़ की राशि नहीं
1923 में गीता प्रेस की शुरुआत हुई और यह दुनिया के सबसे बड़े प्रकाशकों में से एक है। गीता प्रेस ने 14 भाषाओं में 41.7 करोड़ पुस्तकें प्रकाशित की हैं, जिनमें श्रीमद्‍भगवद्‍गीता की 16.21 करोड़ प्रतियां शामिल हैं। वहीं गीता प्रेस की ओर से कहा गया है कि प्रतिष्ठित गांधी शांति पुरस्कार मिलना सम्मान की बात है, लेकिन किसी प्रकार का दान स्वीकार नहीं करने के अपने सिद्धांत के अनुरूप प्रकाशन संस्था एक करोड़ रुपये की नकद पुरस्कार राशि को स्वीकार नहीं करेगी। प्रकाशन संस्था ने गांधी शांति पुरस्कार के लिए चयनित होने पर केंद्र सरकार को धन्यवाद दिया।

गांधी शांति पुरस्कार की कब हुई शुरुआत, किसे मिलता है सम्मान
गांधी शांति पुरस्कार एक वार्षिक पुरस्कार है, जिसकी शुरुआत सरकार ने 1995 में महात्मा गांधी की 125वीं जयंती के अवसर पर गांधी द्वारा प्रतिपादित आदर्शों को सम्मान देते हुए की थी। मंत्रालय ने कहा कि पुरस्कार किसी भी व्यक्ति को दिया जा सकता है चाहे उसकी राष्ट्रीयता, नस्ल, भाषा, जाति, पंथ या लिंग कोई भी हो। मंत्रालय ने कहा कि पुरस्कार में एक करोड़ रुपये, एक प्रशस्ति पत्र, एक पट्टिका और एक उत्कृष्ट पारंपरिक हस्तकला/हथकरघा वस्तु शामिल है। हाल के समय में सुल्तान कबूस बिन सैद अल सैद, ओमान (2019) और बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान (2020), बांग्लादेश को इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

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