कहानी इमरजेंसी की : 25 जून की याद, जब कोर्ट ने इंदिरा की चुनावी जीत को रद्द की तो उन्होंने देश में इमरजेंसी लगा दी, 1 लाख लोगों को जेल में डाल दिया गया

Date:

आज 25 जून है आज ही के दिन इमरजेंसी लगाई गई थी

इमरजेंसी के पीछे की कहानी जानेंगे, सबसे पहले बात उस चुनाव की, जो इसकी वजह बना।

25 जून 1975, देश में पहली बार इमरजेंसी की घोषणा कर दी गई। ऐसा इसलिए क्योंकि कोर्ट ने उस वक्त की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की चुनावी जीत को गलत बताते हुए रद्द कर दिया था। इंदिरा ने इस्तीफा नहीं दिया। .
बेटे संजय और प्राइवेट सेक्रेटरी आरके धवन ने विरोधियों के नामों की चिट्ठी मुख्यमंत्रियों को भेजकर गिरफ्तार करने का आदेश दे दिया।

अधिकारियों को चुनाव प्रचार में ड्यूटी लगा दिया
1971 के लोकसभा चुनाव के लिए इंदिरा गांधी ने 29 दिसंबर 1970 को खुद को रायबरेली सीट से प्रत्याशी घोषित कर दिया था। 7 जनवरी से उन्होंने प्रचार शुरू किया। प्रधानमंत्री सचिवालय के एक बड़े अफसर यशपाल कपूर उनके चुनाव प्रचार में जुट गए।
उन्होंने अपने पद से इस्तीफा 13 जनवरी को दिया, लेकिन 25 जनवरी तक सरकारी सेवा में बने रहे और इंदिरा के लिए प्रचार करते रहे। चुनाव के परिणाम आए तो इंदिरा गांधी ने सोशलिस्ट पार्टी के राज नारायण को 1 लाख 11 हजार 810 वोटों से हरा दिया। इंदिरा को 1 लाख 83 हजार 309 वोट मिले थे।
राज नारायण कोर्ट चले गए। उन्होंने आरोप लगाया कि इंदिरा गांधी ने सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करके चुनाव जीता। इंदिरा ने इसे हल्के में लिया। इतना हल्के में कि अपनी तरफ से कोई वकील ही नहीं नियुक्त किया।

इंदिरा सरकारी अधिकारियों से पंडाल बनवाती थीं
12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी के चुनाव को रद्द कर दिया। साथ ही अगले 6 साल के लिए इंदिरा गांधी को संवैधानिक पदों के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया।
कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा था, “इंदिरा गांधी अपनी चुनावी रैलियों के लिए पंडाल बनाने के लिए यूपी के सरकारी अधिकारियों की मदद ली थी।”

इंदिरा ने इस्तीफा देने की सोची तो संजय ने रोक लिया
इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद इंदिरा ने पीएम पद छोड़ने का मन बना लिया। पश्चिम बंगाल के तत्कालीन सीएम सिद्धार्थ शंकर रे और कानून मंत्री एचआर गोखले सफदरगंज घर पहुंचे। थोड़ी देर बाद कृषि मंत्री जगजीवन राम, पार्टी अध्यक्ष देवकांत बरुआ, उमाशंकर दीक्षित भी पहुंच गए।
इंदिरा ने सिद्धार्थ से कहा, “मुझे इस्तीफा दे देना चाहिए।” सिद्धार्थ थोड़ी देर चुप रहे, फिर कहा, “एक बार विचार कर लें।”

‘एक जीवन काफी नहीं’ किताब में पत्रकार कुलदीप नैयर लिखते हैं, “इंदिरा इस्तीफा देना चाहती थीं, लेकिन तभी उनके छोटे बेटे संजय पहुंचे और उन्होंने अपनी मां को इस्तीफा नहीं देने के लिए मना लिया।” संजय ने तब कहा था, ”अगर आप इस्तीफा दे देंगी तो विपक्ष किसी न किसी बहाने आपको जेल में डाल देगा।’ इंदिरा गांधी को यह बात सही लगी।”

विपक्ष की रैली फेल करने के लिए मीडिया की बिजली काट दी
इंदिरा गांधी को पहला झटका कोर्ट ने दिया, दूसरा झटका उन्हें गुजरात चुनाव ने दिया। नतीजे आए तो पता चला जनता मोर्चे ने चिमनभाई पटेल की सरकार को हरा दिया। बंगाल के सीएम सिद्धार्थ रे ने भी इंदिरा को अब इमरजेंसी लगाने की सलाह दे दी।
इंदिरा के प्राइवेट सचिव आर के धवन भी संजय और सिद्धार्थ के फैसले के साथ थे। कोर्ट के फैसले के 10 दिन बाद भी इंदिरा ने इस्तीफा नहीं दिया तो विपक्ष ने 26 जून को दिल्ली मे विशाल रैली करने का फैसला किया। रैली को लेकर इंटेलिजेंस ब्यूरो को विद्रोह के इनपुट मिल चुके थे।
संजय ने अखबारों की लाइट कटवा दी, ताकि रैली की बात दूर तक नहीं पहुंचे। आरके धवन के साथ विरोधी दलों के नेताओं की लिस्ट बनाकर मुख्यमंत्रियों को भेजा जाने लगा। मकसद था कि इन्हें गिरफ्तार करके जेल में डाला जाए। इंदिरा के दूसरे लड़के राजीव को यह सब पसंद नहीं था, लेकिन वह संजय को समझा नहीं पाए।

कैबिनेट में बिना किसी से चर्चा किए इमरजेंसी का ऐलान
इंदिरा गांधी ने उस वक्त के राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद को पत्र लिखा। उसमें उन्होंने कहा, ”कैबिनेट से बात करना चाहती थी, लेकिन यह संभव नहीं। देश में फैली अशांति बड़ा खतरा है।” फखरुद्दीन ने उस लेटर पर सिग्नेचर कर दिया।
इसके साथ ही 25 जून की आधी रात को इमरजेंसी का ऐलान हो गया। रेडियो पर इंदिरा गांधी की आवाज सुनाई दी, “जब से मैने आम आदमी और देश की महिलाओं के फायदे के लिए कुछ जरूरी कदम उठाए हैं तभी से मेरे खिलाफ साजिशें रची जा रही हैं।”
इमरजेंसी के ऐलान के बाद लोगों को ढूंढ-ढूंढकर जेलों में डाला जाने लगा, क्योंकि इस दौरान सरकार को धारा-352 के तहत सारे अधिकार प्राप्त थे। इंदिरा जब तक चाहती तब तक सत्ता पर रह सकती थीं। रेडियो बुलेटिन और अखबार की खबरों पर सेंसरशिप बढ़ गई। सारे बुलेटिन पढ़ने के बाद ही प्रसारित होते थे।

संजय ने पांच सूत्रीय कार्यक्रम शुरू किया
देश में अराजकता फैली थी। लाखों लोगों को जेल में डाल दिया गया। संजय गांधी ने इसी दरमियान पांच सूत्रीय कार्यक्रम शुरू किया। इनमें परिवार नियोजन, दहेज प्रथा का खात्मा, पेड़ लगाना, वयस्क शिक्षा और जाति प्रथा का खात्मा विषय था।
इन सभी को बहुत कड़ाई के साथ पालन करवाया गया। सुंदरीकरण के नाम पर एक दिन में ही दिल्ली के तुर्कमान गेट की झुग्गियों को तोड़ दिया गया। करीब 50 हजार लोग प्रभावित हुए थे।

राजघराने की महारानियों को बंदी बना लिया गया
जेवियर मोरो लिखते हैं, “देश में जिसने भी इंदिरा गांधी का विरोध किया, उसे गिरफ्तार कर लिया गया। जयपुर और ग्वालियर की राजमाताओं को भी नहीं छोड़ा गया, क्योंकि इन्होंने कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ा था।
इन दोनों महारानियों को तिहाड़ जेल में अपराधियों और वैश्याओं के साथ रखा गया। जयपुर की राजमाता गायत्री देवी की कोठरी से बदबू आती थी। जेल में भारी शोर रहता था।”

जबरन नसबंदी पर जोर
मोरो लिखते हैं, “संजय गांधी ने बढ़ती जनसंख्या को ही देश की समस्या की वजह माना। उसके पहले परिवार नियोजन को लेकर कंडोम की उपयोगिता बताई गई, लेकिन इसका असर नहीं पड़ा।
उन्होंने मुख्यमंत्रियों को आदेश दिया कि सख्ती के साथ नसबंदी करवाई जाए। हरियाणा में उस वक्त के मुख्यमंत्री बनारसी दास गुप्ता ने तीन हफ्ते में ही 60 हजार नसबंदी ऑपरेशन करवा दिया। दूसरे राज्यों पर प्रेशर बढ़ा तो उन्होंने अधिकारियों को टारगेट दे दिया।”

120 रुपए का लालच देकर नसबंदी करते थे
उस वक्त सरकार की तरफ से नसबंदी करवाने वालों के लिए तीन ऑप्शन थे। वह 120 रुपया ले सकते हैं। एक टीन खाद्य तेल ले सकते हैं या फिर एक रेडियो ले सकते हैं।
इन सभी ऑप्शन के बीच हल्ला मची कि नसबंदी करवाते ही इंसान नपुंसक हो जाएगा। लोग सरकारी अस्पतालों से बचकर भागने लगे। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों, कर्मचारियों पर दबाव था, जब तक कोटा नहीं पूरा होगा सैलरी नहीं मिलेगी।डॉक्टर प्रशासन के साथ गरीब गांवों को चिन्हित करते और वहां घेरकर लोगों की नसबंदी कर देते।
राजीव उसी वक्त भोपाल से दिल्ली लौटे थे, उन्होंने इंदिरा से बताया कि भोपाल में मुस्लिम वर्ग भयभीत है। अगर इसे रोका नहीं गया तो सांप्रदायिक दंगे हो सकते हैं। इंदिरा ने उनकी बातों को अनसुना कर दिया।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Share post:

Popular

more like this
Related

10 lesser-known facts about India's chess star D. Gukesh

D. Gukesh has entered international chess at a very young age...

Pakistan PM Finally Acknowledges India's BrahMos Missile Strike on Air Bases

In a major revelation that has stunned the international...
hi_INहिन्दी