राजस्थान: गहलोत का खेल, अभी पत्ते भी नहीं खोले और 90 से ज्यादा विधायक बागी.. सोनिया, पायलट भी शांत, क्या हवा बदलेगी?

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राजस्थान में कांग्रेस में घमासान फिर शुरू हो गया है। गहलोत खेमे पायलट को राज्य का सीएम बनाने का खुलकर विरोध कर दिया है। गहलोत के करीबी विधायकों ने राज्य एक तरह से बगावत कर दी है। उधर, राजस्थान के सीएम को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने की कोशिश में जुटे गांधी परिवार के लिए यह किसी झटके से कम नहीं है।

Jaipur: महज दो राज्यों में अपने बलबूते सरकार में मौजूद कांग्रेस ने क्या राजस्थान को दांव पर लगा दिया है? अभी तक ये साफ दिख रहा था कि आलाकमान के सामने पार्टी अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने को हामी भर चुके अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) राज्य की बागडोर भी आसानी से छोड़ देंगे। लेकिन अचानक रविवार की रात सारे समीकरण गड़बड़ा जाते हैं। गहलोत खेमे के 90 विधायक विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी के पास इस्तीफा देने पहुंच जाते हैं। गहलोत जैसे अनुभवी नेता को कांग्रेस अध्यक्ष बनाकर जहां पार्टी खुद को सहज करने की कोशिश में जुटी थी लेकिन उन्ही गहलोत ने राज्य में पेच फंसा दिया। राजस्थान में मौजूदा सियासी घटनाक्रम पर बड़े सवाल भी खड़े हो रहे हैं। क्या पार्टी ने किसी सोची-समझी रणनीति के तहत इस राजस्थान में सत्ता को दांव पर लगा दिया है? अगर पिछले दो दिन की गतिविधि को देखें तो इसके पीछे कई के समीकरण समझे जा सकते हैं।

क्या गहलोत ने कराया विद्रोह?
साफ तौर पर देखने से लगता है कि गांधी परिवार के वफादार गहलोत ने अपने विधायकों से आलाकमान के खिलाफ विद्रोह करवा दिया है। सरसरी तौर पर ये सही दिख भी रहा है। लेकिन, जरा ठहरिए। जो आलाकमान पार्टी के अध्यक्ष पद पर गहलोत को बैठाना चाह रहा है क्या उसके खिलाफ जाने का रुख गहलोत करेंगे? ऐसा लगता नहीं है। पिछले करीब दो साल में गहलोत का कद पार्टी में काफी बड़ा हुआ है। जब सचिन पायलट ने पार्टी के कुछ विधायकों को लेकर विरोध किया था तो ये गहलोत ही थे जो बड़ी आसानी से सरकार बचा ले गए थे। राज्यसभा चुनाव में भी पार्टी ने गहलोत पर भरोसा जताया और राजस्थान के सीएम पार्टी के भरोसे पर खरे उतरे। गहलोत केवल इतना चाहते हैं कि उनके सीएम पद छोड़ने के बाद उनकी पसंद का कोई नेता राज्य का सीएम बने।

क्या रहेगा गांधी परिवार का दांव?
राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने से इनकार के बाद गांधी परिवार किसी ऐसे शख्स की इस पद पर ताजपोशी चाहता है जो उसका करीबी हो। गहलोत गांधी परिवार के करीबी और वफादार दोनों हैं। कुछ विश्लेषक कह रहे हैं कि कांग्रेस गहलोत के जरिए खुद को सहज करना चाहती है। यानी बीजेपी के वंशवाद के लगने वाले आरोप से बचना चाहती है। इसी चक्कर में गड़बड़ी हो रही है। गहलोत अध्यक्ष पद के लिए बड़ी मुश्किल से राजी तो हुए हैं लेकिन राजस्थान के सीएम पद के लिए अपने पसंद के उम्मीदवार चाहते हैं। सचिन पायलट के नाम पर गहलोत खेमा राजी नहीं है। उधर पार्टी के लिए हालात मुश्किल हो गए हैं। भारत जोड़ो यात्रा पर निकले राहुल गांधी ने जो दांव चला था वो उल्टा पड़ता दिख रहा है। पार्टी एक वफादार को कांग्रेस के शीर्ष पद पर तो बैठाना चाह रही है लेकिन इस चक्कर में राजस्थान की सत्ता दांव पर लग गई है।

क्या केवल गहलोत के चक्कर में बवाल?
बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि पार्टी केवल गहलोत के चक्कर में इतना बवाल क्यों करवा रही है? क्या गहलोत के अलावा पार्टी में कोई ऐसा नेता नहीं है जो पार्टी का मुखिया बन सके? दरअसल, यहां बात आकर अटक रही है एक सर्वमान्य चेहरा और गांधी फैमिली के प्रति वफादारी की। गहलोत गांधी परिवार के करीबी हैं। गांधी परिवार सीताराम केसरी के कार्यकाल जैसी स्थिति नहीं चाहते हैं। गहलोत के जरिए गांधी परिवार अपना मिशन आगे बढ़ाना चाहती थी। गौरतलब है कि गहलोत के खिलाफ जी-23 के नेता शशि थरूर चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं।

माकन ने गहलोत धड़े को लपेट लिया
हालांकि, राजस्थान में पर्यवेक्षक बनकर गए अजय माकन ने गहलोत खेमे की तीन शर्तों को लेकर जमकर खींचा है। माकन ने कहा कि कांग्रेस के इतिहास में कभी शर्त लगाकर रिजोल्यूशन नहीं आता है। माकन ने अपने बयान के जरिए जिस तरह के तेवर दिखाए हैं वो उससे तो साफ लग रहा है कि पार्टी आलाकमान राजस्थान में बड़ा खेल करने का मन बना चुकी है। कांग्रेस हाईकमान सचिन पायलट को सीएम बनाने की मंशा साफ कर चुकी है। ऐसे में माकन के सख्त तेवर से ये साफ लग रहा है कि कांग्रेस आलाकमान ने दांव जान-बूझकर चला है। पहला दांव है अपने करीबी को पार्टी के शीर्ष पद पर बैठाना। दूसरा, पायलट के साथ किए गए वादे को पूरा करना।

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