President Election 2022: एकजुट होता दिख रहा विपक्ष , ममता ने सुझाए फरुक और यशवंत सिन्हा के नाम , शरद पँवार के इनकार के क्या है मायने

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राष्ट्रपति चुनाव को लेकर विपक्षी दलों की बुधवार को दिल्ली में हुई बैठक में 17 राजनीतिक दलों के नेताओं ने हिस्सा लिया। सभी नेताओं ने नैशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के नेता शरद पवार को राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनने का अनुरोध किया।
मगर, उन्होंने एक बार फिर इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। दो घंटे चली यह बैठक पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी ने बुलाई थी।

आगामी 18 जुलाई को होने वाले राष्ट्रपति चुनाव (President Election) की रेस से एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने खुद को कुछ दिन पहले ही अलग कर लिया था। बावजूद इसके वो बुधवार को टीएमसी नेता ममता बनर्जी द्वारा बुलाई गई बैठक में शामिल हुए।
यह बैठक विपक्ष के राष्ट्रपति उम्मीदवार के चयन के लिए बुलाई गई थी। इस बैठक में भी पवार को दोबारा राष्ट्रपति बनने के लिए ऑफर दिया गया था। जिसे उन्होंने बैठक के दौरान बड़ी विनम्रता से ठुकरा दिया है।
यह बैठक तकरीबन दो घंटे तक चली थी। राष्ट्रपति चुनाव के लिए नॉमिनेशन की प्रक्रिया बुधवार से शुरू हो गई है। खबर यह भी है कि शरद पवार (Sharad Pawar) एक दूसरी बैठक बुलाने वाले हैं। जो कि 20- 21 जून को मुंबई (Mumbai) में होगी।
ऐसे में हर कोई यह जानना चाहता है कि जब पवार यह चुनाव नहीं लड़ना चाहते हैं तो फिर इस बैठक को आयोजित करने का क्या फायदा?

क्या बोले थे शरद पवार?
शरद पवार ने कहा था कि मैं विपक्ष की तरफ से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार नहीं हूं। यह बात उन्होंने सोमवार को हुई एनसीपी की कैबिनेट बैठक के दौरान कही थी। पवार के इस बयान से विपक्षी खेमे में निराशा का माहौल है। आपको बता दें कि शरद पवार की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के लिए कांग्रेस ने भी अपना समर्थन जाहिर किया था।ममता की बैठक कौन-कौन?

ममता की बैठक में कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, एनसीपी, द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (द्रमुक), शिवसेना, राष्ट्रीय जनता दल, नैशनल कॉन्फ्रेंस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और वाम दलों के नेता इस बैठक में शामिल हुए।
आम आदमी पार्टी, तेलंगाना राष्ट्र समिति, शिरोमणि अकाली दल और बीजू जनता दल के नेता बैठक में नहीं आए। बैठक के बाद द्रमुक नेता टी. आर. बालू ने कहा, ‘सभी दलों के नेताओं ने शरद पवार से अनुरोध किया कि वह राष्ट्रपति का चुनाव लड़ें, लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया।

राष्ट्रपति चुनाव के बीजेपी ने कसी कमर
राष्ट्रपति के उम्मीदवार के नाम पर सहमति बनाने के लिए बीजेपी ने विपक्षी दलों से संपर्क साधा है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बुधवार को कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव से बात की।
सूत्रों ने बताया कि विपक्षी नेताओं ने एनडीए की ओर से राष्ट्रपति के उम्मीदवार का नाम जानना चाहा। राजनाथ सिंह ने इन नेताओं के अलावा, ओडिशा मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और बिहार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भी बात की।

खड़गे ने कहा, ‘राजनाथ सिंह ने मुझे फोन किया और राष्ट्रपति चुनाव के बारे में बात की। लेकिन जब प्रस्ताव के बारे में पूछा गया, तो कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। मैंने उनसे कहा कि अगर विपक्ष एक गैरविवादास्पद नाम लेकर आता है, तो क्या सरकार इसे स्वीकार करेगी? इस बातचीत में कोई हल नहीं निकला है।

पवार के मन को कोई नहीं जानता
महाराष्ट्र की राजनीति को करीब से जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार सचिन परब ने नवभारत टाइम्स ऑनलाइन को बताया कि पवार के मन में क्या चल रहा है। इसे खुद उनके अलावा आजतक कोई नहीं समझ पाया है।
पवार जब हाँ कहते हैं तब ज्यादातर इसका मतलब न होता है और जब वो न कहते हैं तब इसका मतलब हाँ होता है। परब ने पवार से जुड़ा एक किस्सा भी बताया, जब एनसीपी के गठन के बाद कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने की हलचल शुरू थी। तब सीएम पद के लिए दिवंगत विलासराव देशमुख का नाम सबसे आगे चल रहा था।

उस दौरान पवार की तरफ से यह स्पष्ट संदेश था कि इस बार सीएम एनसीपी का ही बनेगा। एनसीपी के कई नेताओं ने उस समय आयोजित की जाने वाली बैठकों में यह बात कही थी। हालाँकि बाद में खुद पवार ने कहा कि विलासराव देशमुख ही मुख्यमंत्री बनेंगे। परब ने बताया कि पवार आखिर तक पाने पत्ते नहीं खोलते हैं।

शायद पवार सच में राष्ट्रपति नहीं बनना चाहते हैं?
सचिन परब ने बताया कि हो सकता है शरद पवार सच में राष्ट्रपति न बनना चाहते हों। क्योंकि को पचास से भी ज्यादा सालों से सक्रिय राजनीती में हैं। उन्हें जनता के बीच रहना अच्छा लगता है।
इसके अलावा यह कोई पहला मौका नहीं है जब शरद पवार ने खुद को राष्ट्रपति पद के चुनाव से अलग किया हो। इसके पहले भी शरद पवार बीते कई सालों से राष्ट्रपति चुनाव में शामिल न होने की बात कहते रहे हैं।
कई साल पहले भी पवार ने कहा था कि मैं राष्ट्रपति पद की दौड़ में नहीं हूं। मुझे राजनीति से इतनी जल्दी रिटायर नहीं होना है। उन्होंने कहा था कि अगर आप राष्ट्रपति बनते हैं तो आपको अच्छी हवेली मिलती है लेकिन आप लोगों से मिलने का मौका नहीं मिलता।

पवार के चुनाव न लड़ने की एक वजह यह भी
शरद पवार इस बात को बखूबी जानते हैं कि राष्ट्रपति का चुनाव जीतना इतना आसान नहीं है। क्योंकि जीत के लिए लिए जरूरी आंकड़ा विपक्ष के पास नहीं है। लोकसभा में विपक्ष की ताकत काफी कम है। हालांकि राज्यसभा और विधानसभा में हालात ठीक हैं। दूसरी तरफ विपक्ष में भी एकजुटता नहीं है। लिहाजा वे यह रिस्क लेने से कतरा रहे हैं।

वहीं राजनीतिक विश्लेषक यह भी मानते हैं कि नरेंद्र मोदी और शरद पवार के बीच काफी अच्छे संबंध हैं। ऐसे में वो वो एनडीए के उम्मीदवार के खिलाफ चुनाव लड़कर अपने रिश्ते खराब नहीं करना चाहते हैं।

कुछ लोगों का यह भी मानना है कि पवार आगामी 2024 के लोकसभा चुनाव में फोकस कर रहे हैं। ताकि उस चुमाव मे थर्ड फ्रंट के जरिये बीजेपी को कड़ी टक्कर दी जा सके। इसके अलावा खुद उनकी पार्टी में ही कई गुट हैं। यदि वो दिल्ली में सक्रिय होते हैं तो यहां पार्टी बिखर सकती है। जिसका सीधा असर लोकसभा चुनाव में होगा।

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