Rajasthan Politics: जगदीप धनखड़ की जीत से जाट वोट साधने की तैयारी, क्या राजस्थान में बदलेंगे सियासी समीकरण?

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एनडीए उम्मीदवार जगदीप धनखड़ के उपराष्ट्रपति पद के लिए निर्वाचित होने पर राजस्थान के सियासी समीकरण बदलने के आसार है। राजस्थान की 200 विधानसभा सीटों में करीब 30-40 सीटों पर जाटों का दबदबा रहा है।

एनडीए उम्मीदवार जगदीप धनखड़ के उपराष्ट्रपति पद के लिए निर्वाचित होने पर राजस्थान के सियासी समीकरण बदलने के आसार है। राजस्थान की 200 विधानसभा सीटों में करीब 30-40 सीटों पर जाटों का दबदबा रहा है। जाट वोटर्स की हार-जीत में निर्णायक भूमिका मानी जाती रही है। दोनों ही दल कांग्रेस और भाजपा जाटों की अहमियत जानती है। इसलिए दोनों ही दलों के प्रदेश अध्यक्ष जाट समुदाय से आते हैं। राजस्थान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया। धनखड़ से पहले भाजपा ने आदिवासियों को लुभाने के लिए द्रौपदी मुर्मू पर दांव खेला था। राजस्थान में आदिवासी और जाट वोट बैंक पर कांग्रेस की पकड़ मजबूत रही है। भाजपा की रणनीति और सांसद हनुमान बेनीवाल के उदय से कांग्रेस का वोट बैंक छिटक सकता है।

कृषि कानून और किसान आंदोलन के कारण भाजपा से जाट नाराज चल रहे थे। सांसद हनुमान बेनीवाल ने तो किसान आंदोलन पर भाजपा से गठबंधन भी तोड़ लिया था। कांग्रेस नेता भाजपा पर जाट और किसान विरोधी होने के आरोप लगाते रहे हैं, लेकिन जगदीप धनखड़ पर दांव खेलकर भाजपा ने कांग्रेस को सियासी तौर पर झटका दे दिया है। जानकारों का कहना है कि धनखड़ राजस्थान के रहने वाले हैं। इसलिए भाजपा को विधानसभा चुनाव 2023 और लोकसभा चुनाव 2024 में सियासी फायदा मिल सकता है ।​​​​​​​

40 विधानसभा सीटों पर जाटों का दबदबा

भाजपा को विधानसभा-लोकभसभा चुनाव में नागौर, सीकर, चूरू, झुंझुनूं, जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर, भरतपुर और धौलपुर में जाट मतदाताओं को साधने में मदद मिलेगी। जानकारों का कहना है कि राजस्थान में जाट कुल आबादी का करीब 10% है। इसमें बाड़मेर‍, जैसलमेर, जोधपुर, बीकानेर, गंगानगर, चूरू, सीकर, नागौर, हनुमानगढ़, जयपुर सहित कई जिलों में जाटों की सबसे अधिक जनसंख्या है। आजादी के बाद से लेकर अब तक प्रदेश में भले ही जाट मुख्यमंत्री ना बना हो, लेकिन राजस्थान की राजनीति में इस समाज का काफी दबदबा है। भाजपा, कांग्रेस और आरएलपी के प्रदेश अध्यक्ष जाट ही हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा हैं।

बेनीवाल के बाद अब धनखड़ फैक्टर का पड़ सकता है असर
आरएलपी के संयोजक हनुमान बेनीवाल हैं के उदय से सियासी तौर पर कांग्रेस को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। हनुमान बेनीवाल की पार्टी आरएलपी ने लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के गढ़ नागौर में सेंध लगा दी थी। पंचायत चुनावों में बेनीवाल की पार्टी आरएलपी ने कांग्रेस को सियासी नुकसान पहुंचाया था। बेनीवाल के बाद अब जगदीप धनखड़ फैक्टर से निपटने के लिए कांग्रेस को नए सिरे से रणनीति बनानी पड़ सकती है।

राजस्थान विधानसभा में 20% विधायक जाट जाति के होते हैं। कुल 200 विधानसभा सीटें हैं, जिनमें से 30 से 40 विधानसभा सीटों पर जाट जाति के कैंडिडेट चुनाव जीतते रहे हैं। प्रदेश की 5 लोकसभा सीटों पर भी जाट वोट बैंक निर्णायक भूमिका में होता है। इसलिए इन लोकसभा क्षेत्रों से हमेशा जाट प्रत्याशी ही चुनाव जीत पाते हैं या फिर जाट वोट बैंक को अपनी तरफ खींचने वाला प्रत्याशी ही चुनाव जीत पाता हैं। 2023 नवंबर और दिसंबर में विधानसभा का चुनाव होना है। ऐसे में भाजपा धनखड़ के जरिए सियासी लाभ उठाने की पूरी कोशिश करेगी।

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