वास्तु नियमों का पालन करने से घर में सुख और समृद्धि बनी रहती है। अनदेखी या लापरवाही करने से घर की आर्थिक स्थिति बिगड़ जाती है। अतः वास्तु नियमों का पालन अवश्य करें। वास्तु शास्त्र के अनुसार घर की दक्षिण दिशा में यम और पितरों का वास होता है। अतः इस दिशा में भूलकर भी कुछ चीजें नहीं रखनी चाहिए।
नई दिल्ली: हिन्दू धर्म में वास्तु शास्त्र का विशेष महत्व है। लोग गृह निर्माण से लेकर गृह प्रवेश करने तक वास्तु नियमों का पालन करते हैं। वास्तु नियमों का पालन करने से घर में सुख और समृद्धि बनी रहती है। अनदेखी या लापरवाही करने से घर की आर्थिक स्थिति बिगड़ जाती है। अतः वास्तु नियमों का पालन अवश्य करें। वास्तु शास्त्र के अनुसार घर की दक्षिण दिशा में यम और पितरों का वास होता है। आसान शब्दों में कहें तो घर की दक्षिण दिशा यम और पितरों का निवास स्थान है। अतः इस दिशा में भूलकर भी कुछ चीजें नहीं रखनी चाहिए। आइए, इन चीजों के बारे में जानते हैं-
दक्षिण दिशा में न रखें ये चीजें
- वास्तु जानकारों की मानें तो घर की दक्षिण दिशा में पूजा घर नहीं होना चाहिए। अगर घर की दक्षिण दिशा में पूजा घर है, तो पूजा करने का फल प्राप्त नहीं होता है। इस दिशा में पितरों की पूजा की जाती है। अतः दक्षिण दिशा में यम देव और पितरों की पूजा करनी चाहिए। देवी देवताओं की मूर्ति दक्षिण दिशा में स्थापित करने से घर में वास्तु दोष पैदा होता है।
- वास्तु शास्त्र के अनुसार घर की दक्षिण दिशा में शयन कक्ष नहीं होना चाहिए। इससे नींद में बाधा आती है। साथ ही घर में बीमारियां दस्तक देती हैं। इस दिशा में बेड रखने से पितृ दोष भी लगता है। घर की दक्षिण दिशा में मदिरा न रखें। इससे पितृ अप्रसन्न होते हैं।
- वास्तु शास्त्र में निहित है कि घर की दक्षिण दिशा में पितृ और यम देव निवास करते हैं। अतः घर की दक्षिण दिशा में भूलकर भी जूते चप्पल न रखें। ऐसा करने से पितरों का अपमान होता है। इससे पितृ अप्रसन्न हो जाते हैं। एक बार पितृ अप्रसन्न हो जाते हैं, तो जीवन में ढ़ेर सारी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इसके लिए घर की दक्षिण दिशा में जूते चप्पल न रखें।
- घर की दक्षिण दिशा में कोई खराब मशीनरी नहीं रखनी चाहिए। इससे घर में वास्तु दोष लगता है। इसके अलावा, कबाड़ या पुराने समान भी घर की दक्षिण दिशा में न रखें। इससे आर्थिक स्थिति डगमगा जाती है। अगर आप सुख और समृद्धि पाना चाहते हैं, तो रोजाना दक्षिण दिशा की ओर मुख कर पितरों को प्रणाम करें। स्नान-ध्यान के बाद उन्हें जल का अर्घ्य दें।