तुर्किये में 28 मई को फिर से होंगे राष्ट्रपति चुनाव, कल हुए इलेक्शन में किसी को बहुमत नहीं, भारत विरोधी एर्दोगन को कमाल गांधी ने रोका

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तुर्किये: रविवार को हुए राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे आ गए हैं। जनता ने किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं दिया है। कश्मीर मामले में पाकिस्तान का समर्थन करने वाले रेसेप तैयप एर्दोगन की पार्टी AKP को 49.4% वोट मिले। वहीं, तुर्किये के गांधी कहे जाने वाले कमाल केलिकदारोग्लू की पार्टी CHP को 45.0% वोट मिले हैं। जबकि सत्ता में आने के लिए किसी भी पार्टी को 50% से ज्यादा वोट मिलने चाहिए। तुर्किये में फरवरी में आए भूकंप के 3 महीने बाद ये चुनाव हुआ था। भूकंप में 50 हजार से ज्यादा लोगों की जान गई थी। अलजजीरा के मुताबिक लोगों ने इसका जिम्मेदार 20 साल से सत्ता में बैठे राष्ट्रपति एर्दोगन को ठहराया था।

वोटरों को मनाने के लिए एर्दोगन के पास सिर्फ 2 हफ्ते
तुर्किये में पहले राउंड में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिलने की वजह से 28 मई को दोबारा वोटिंग होगी। जिसमें अभी 2 हफ्ते हैं। न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक एर्दोगन इन 14 दिनों का इस्तेमाल अपने वोटर्स को मनाने में करेंगे। वो 11 साल तक तुर्किये के प्रधानमंत्री और 9 साल तक राष्ट्रपति रहे हैं। ये नतीजे 20 साल में उनके प्रदर्शन के रिजल्ट के तौर पर देखे जा रहे हैं। 2011 में भ्रष्टाचार मिटाने और अर्थव्यवस्था को बेहतर करने के वादे के साथ सत्ता में आए एर्दोगन अब लगातार डूबती अर्थव्यवस्था वाले देश के राष्ट्रपति हैं। जिन पर लोकतंत्र को कमजोर करने के आरोप लगते हैं।

कमाल ने कहा था- आज रात सोना नहीं है
नतीजों से पहले दोनों पार्टियों ने जीत का दावा किया था। एर्दोगन ने समर्थकों से कहा- मतदान पेटियों की हिफाजत करें और उन पर नजर रखें। हमें नतीजों का इंतजार है। काउंटिंग के शुरूआती रुझानों में एर्दोगन की पार्टी को 60% वोट मिल रहे थे। जो बाद में पिछड़ते चले गए। वहीं, मुख्य विपक्षी पार्टी के नेता कमाल ने नतीजों में कड़ी टक्कर के चलते कहा था- मेरे साथियों आज रात हम सोएंगे नहीं। नतीजों में किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलने के बाद कमाल ने कहा कि जनता ने साबित किया है कि वो बदलाव चाहती है।

भूकंप में तबाह हुए शहरों के लोग अब भी एर्दोगन के साथ
फरवरी में आए भूकंप का 11 शहरों पर सबसे ज्यादा असर पड़ा था। इनमें 8 शहरों को एर्दोगन का गढ़ माना जाता है। जहां पिछले 2 चुनावों में उन्हें 60% से ज्यादा वोट मिले थे। रविवार को हुए चुनाव में भी बहुत कुछ नहीं बदला। 8 में से 5 शहरों में एर्दोगन के केवल 2 से 3% वोट घटे, जबकि बाकी 3 में कोई बदलाव नहीं हुआ। भूकंप का केंद्र रहे गाजियांटेप शहर में एर्दोगन की पार्टी को 59% वोट मिले हैं।

नए उम्मीदवार सिनान ओगन ने एर्दोगन को सत्ता में आने से रोका
तुर्किये की 2 अहम पार्टियों के अलावा इस चुनाव में नए उम्मीदवार सिनान ओगन की पार्टी (ATA अलायंस) ने भी 5% से ज्यादा वोट हासिल किए। जो अब एर्दोगन और कमाल को सत्ता में लाने के लिए भूमिका निभाएंगे। अलजजीरा के मुताबिक उन्हें दोनों मुख्य पार्टियां अपनी ओर लाने की पूरी कोशिश करेंगी। हालांकि, उनके एर्दोगन की तरफ जाने की उम्मीद ज्यादा है। इसकी अहम वजह ये है कि वो पहले भी एर्दोगन के समर्थन वाले AK गठबंधन का हिस्सा रहे हैं। उन धुर दक्षिण पंथी होने की वजह से 2015 में नेशनलिस्ट मूवमेंट पार्टी ने उन्हें बाहर कर दिया था। तुर्किये में रह रहे लाखों सीरियाई शरणार्थियों पर उनके विवादित बयानों को दुनिया भर में आलोचनाएं होती हैं।

तुर्किये में चुनाव की क्या प्रक्रिया है?
तुर्किये की 600 सीटों वाली संसद में प्रवेश के लिए एक पार्टी के पास 7% वोट होना जरूरी है। या फिर पार्टी किसी ऐसे गठबंधन का हिस्सा हो जिसके पास वोटों की जरूरी संख्या मौजूद हो। तुर्किये में एक व्यक्ति सिर्फ 2 टर्म तक ही राष्ट्रपति रह सकता है। एर्दोगन के 2 टर्म पूरे हो चुके हैं, लेकिन 2017 में राष्ट्रपति के अधिकारों से जुड़ा एक रेफरेंडम लाया गया था, जिसकी वजह से उनका पहला कार्यकाल जल्दी खत्म हो गया था। इसी वजह से एर्दोगन को तीसरी बार चुनाव लड़ने की इजाजत मिल गई है।

चुनाव जीतने के लिए एक उम्मीदवार को 50% वोट हासिल करना जरूरी है
तुर्किये में 36 लाख लोग रिफ्यूजी हैं जो 2011 में सीरिया में सिविल वॉर शुरू होने के बाद यहां आ गए थे। यहां हर नागरिक का वोट डालना जरूरी है। हालांकि वोट नहीं डालने पर जुर्माने का कोई स्ट्रक्चर नहीं बताया गया है। 2018 के चुनाव में यहां 86% वोटिंग हुई थी।

तुर्किये के अब तक के दूसरे सबसे बड़े लीडर एर्दोगन
फर्स्ट वर्ल्ड वॉर में ऑटोमन एम्पायर की हार हो गई थी। इसके बाद एम्पायर की आर्मी में कमांडर रहे मुस्तफा केमाल अतातुर्क ने तुर्किये की स्थापना 1923 में की थी। उस समय वहां की सोसायटी कट्टरपंथी थी। इसके बावजूद केमाल ने तुर्किये को एक सेक्युलर देश बनाया। सालों तक तुर्किये में इस्लामिक ताकतों को इससे परेशानी रही और वो इसका विरोध करते रहे। एर्दोगन खुद 1999 में तुर्किये के सेक्युलर कानूनों का विरोध करने पर जेल गए। इसके ठीक 4 साल बाद 2003 में उन्हें सत्ता मिली। उन्हें दक्षिणपंथी समूहों से खूब समर्थन मिला । नतीजा ये रहा कि लगातार चुनावों में जीत मिली और वो तुर्किये को बनाने वाले नेता कमाल अतातुर्क जितने बड़े नेता बन गए।

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