बागेश्वर सरकार के समर्थन में आगे आए आचार्य बालकृष्ण, कहा- ‘धीर हो धीरेंद्र हो और कृष्ण भी तुम हो’

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हरिद्वार: अपने चमत्कारों को लेकर चर्चा में आए बागेश्वर सरकार धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री से मिलने के लिए शुक्रवार को आचार्य बालकृष्ण पहुंचे। 23 घंटे तक एक साथ समय गुजारने के बाद शनिवार को आचार्य बालकृष्ण ने धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का उत्साह वर्धन किया। उन्होंने कहा कि तुम धीर, धीरेंद्र हो और कृष्ण भी तो तुम ही हो, इसलिए सदैव अविचलित व अडिग बने रहो। उन्होंने ताजा घटनाक्रम को देखते हुए हौंसला बंधाते हुए कहा कि बालकृष्ण जैसे अनेकों भाई तुम्हारे पथ को कंटकविहीन करने के लिए सदैव तत्पर हैं। ऐसा इसलिए है कि तुम सनातन के लिए हो, किसी संप्रदाय के लिए नहीं।

आचार्य बालकृष्ण ने सोशल मीडिया पर अपनी प्रतिक्रिया दी
बागेश्वर सरकार से मुलाकात के बाद आचार्य बालकृष्ण ने सोशल मीडिया पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने लिखा है कि ‘यूं भोलेपन से मुस्कुराना तुम्हारा, यह बताने के लिए पर्याप्त है कि तुम भोले और सहज हो, यह निश्छलता व सहजता ही तुम्हारा आभूषण है। मिलने से पूर्व अविश्वास तो नहीं, पर शंकाओं से रहित भी तो नहीं। लेकिन अब मैं कह सकता हूं, महर्षि पतंजलि के कथन जन्मौषधिमन्त्रतप:समाधिजा: सिद्धय: का एक उदाहरण हो तुम’। बालकृष्ण ने कहा कि सनातन वैदिक धर्म वह वटवृक्ष है, जहां से सभी सम्प्रदाय व परम्पराएं निकली हैं। यदि कोई परंपरा सनातन से नहीं निकली है तो उससे प्रभावित तो आवश्य ही हुई है। इसी के साथ उन्होंने दावा किया कि जो प्रभावित नहीं हुई, वे कभी मानवता के लिए कार्य नहीं कर सकतीं। क्योंकि जो सनातन का नहीं, वह मानवता का भी नहीं।

साथ में गुजारे 23 घंटे
बालकृष्ण ने लिखा है कि उन्होंने अपने अनुज के साथ लगभग 23 घंटे बिताए। इसमें उन्होंने देश के लिए चिंता करते हुए व समस्याओं का समाधान खोजते हुए युवा मस्तिष्क को देखा। राष्ट्रवाद को लेकर धड़कते एक युवा हृदय को देखा। उन्हें गर्व है कि उन्हें ऐसा छोटा भाई मिला। जो संवेदनशील होने के साथ दैवीय कृपा प्रसाद से युक्त है। वह स्वास्थ्य, शिक्षा के क्षेत्र में व साधनहीन वंचित जनों के पीड़ाहरण के लिए कार्य करना चाहता है।

आगे बढ़ते रहने की दी सीख
आचार्य बालकृष्ण ने पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को निरंतर आगे बढ़ते रहने की सीख दी।उन्होंने अपनी पोस्ट में धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के लिए लिखा कि ‘मेरे प्रिय अनुज! हृदय की गहराई से यही भाव निकलता है कि सदैव अविचलित व अडिग बनो, तुम धीर हो, धीरेन्द्र हो, कृष्ण हो। बालकृष्ण सदृश अनेकों भाई तुम्हारे पथ को कंटकविहीन करने के लिए सदैव तत्पर हैं। क्योंकि तुम सनातन के लिए हो, किसी संप्रदाय के लिए नहीं।

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