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Parikrama Benefit: मंदिर में क्यों लगाई जाती है परिक्रमा, घड़ी की दिशा में परिक्रमा लगाने के पीछे है ये वजह

हर धर्म में परिक्रमा करने का महत्व है। मंदिर में प्रवेश करते ही आप भगवान के समक्ष लगे घंटे को बजा कर उनका महिमा मंडन करते होंगे। उसके बाद प्रभु के समक्ष नतमस्तक हो कर उनकी वंदना करते हुए विधिवत पूजा करते होंगे।
इसके बाद बारी आती है भगवान या मंदिर के परिक्रमा करने की। सनातन धर्म के महत्वपूर्ण वैदिक ग्रंथ ऋग्वेद में प्रदक्षिणा या परिक्रमा का जिक्र मिलता है। परिक्रमा पूजा का महत्वपूर्ण अंग माना जाता है।
मान्यता है कि भगवान की परिक्रमा करने से पापों का नाश होता है। ज्यादातर एक बार या तीन बार लोग परिक्रमा लगा कर पूजा को पूर्ण समझ लेते हैं, लेकिन ये कितना सही है ये नहीं पता होता। भगवान या मंदिर के परिक्रमा करने के कुछ नियम भी हैं और तरीके भी।
साथ ही किस दिशा से परिक्रमा शुरू करना चाहिए यह भी ध्यान रखना बेहद जरूरी है।
क्योंकि परिक्रमा करने की दिशा भी ईश्वर के आर्शीवाद को प्रभावित करती है। तो आइए जानें की परिक्रमा के नियम क्या हैं।

जानिए किस भगवान की कितनी बार करें परिक्रमा
परिक्रमा करने के अपने नियम होते हैं। सभी भगवान की परिक्रमा अलग-अलग होती है। हनुमानजी की तीन बार परिक्रमा करनी चाहिए जबकि सूर्य देव की सात, गणपति भगवान की चार बार करें।
वहीं भगवान विष्णु और उनके सभी अवतारों की चार बार करें। जबकि मां दुर्गा की परिक्रमा एक बार ही करना चाहिए। इसके साथ ही शिव जी की आधी प्रदक्षिणा ही करें।
इसके पीछे यह मान्यता है कि जलधारी को लांघना नहीं चाहिए। जलधारी तक पंहुचकर वापस लौट जाएं यदि जलधारी लांघ ली तो परिक्रमा पूरी मान ली जाएगी।

जगह न होने पर गोल-गोल घूमें
सामान्यतौर पर मंदिर या प्रतिमा के गोल घूम कर परिक्रमा करनी चाहिए लेकिन कई मंदिर में या प्रतिमा के पीछे जगह नहीं होती है। ऐसे में आप प्रतिमा या मंदिर के सामने ही गोल-गोल घूम कर परिक्रमा कर लें।

परिक्रमा करते हुए करें इस मंत्र का जाप
यानि कानि च पापानि जन्मांतर कृतानि च।
तानि सवार्णि नश्यन्तु प्रदक्षिणे पदे-पदे।।
अर्थ – हमारे द्वारा जाने-अनजाने में किए गए और पूर्वजन्मों के भी सारे पाप प्रदक्षिणा के साथ-साथ नष्ट हो जाए। परमपिता परमेश्वर मुझे सद्बुद्धि प्रदान करें.

परिक्रमा करने के लाभ
शास्त्रों के अनुसार, मंदिर और भगवान के आसपास परिक्रमा करने से सकारात्मक ऊर्जा शरीर में प्रवेश करती है और ये ऊर्जा व्यक्ति के साथ घर तक आती है जिससे सुख-शांति बनी रहती है।
मंदिर में हमेशा परिक्रमा घड़ी की सुई की दिशा में करनी चाहिए। इससे भी समझ सकते हैं कि आपको हमेशा भगवान के दाएं हाथ की तरफ से परिक्रमा शुरू करनी चाहिए।
परिक्रमा के दौरान अपने इष्ट देव के मंत्र का जाप करने से उसका शुभ फल मिलता है।

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