हम जिन वास्तु देवता की हम बात कर रहे हैं। उनके बारे में बहुत कम ही लोग जानते हैं कि ये वास्तु देवता कौन हैं।
Jaipur: हम सभी लोगों ने वास्तु दोष के बारे में बहुत पढ़ा-सुना होगा। इस घर में वास्तु दोष है, उस बिल्डिंग को वास्तु के हिसाब से नहीं बनाया, वास्तु के हिसाब से इसकी दिशा ठीक नहीं है। इस तरह की कई बातें आपके सामने आई होंगी। दरअसल वास्तु कोई चीज नहीं है। हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार वास्तु देव भूमि के देवता हैं। यानी जिस जमीन पर हम गृह निर्माण करते हैं उसके असली मालिक वास्तु देव हैं। यही कारण है कि किसी भी भवन के निर्माण से पहले वास्तु देव की पूजा की जाती है। वास्तु के नियमों के अनुसार ही उसका निर्माण करना होता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार कमरों से लेकर रसोई व पढ़ाई से लेकर पूजा घर तक हर कमरे भी वास्तु की दिशा को ध्यान में रखकर बनाना ही उचित माना गया है। ऐसी मान्यता है कि ऐसा नहीं करना भूमि के मालिक की सुख- शांति को भंग कर सकता है। हम जिन वास्तु देवता की हम बात कर रहे हैं। उनके बारे में बहुत कम ही लोग जानते हैं कि ये वास्तु देवता कौन हैं, जिनकी प्रसन्नता हर घर के लिए जरूरी है। चालिए आपको भी बता ही देते हैं कौन हैं वास्तु देव।
कौन हैं वास्तु देवता?
हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार वास्तु देव का जन्म भगवान शिव के पसीने की बूंद से हुआ है। प्राचीन लोक कथाओं में भी इस बात का जिक्र है कि जब भगवान शिव व अंधकासुर राक्षस के बीच भयानक युद्ध हुआ तो शिवजी के शरीर से पसीने की कुछ बूंदें जमीन पर गिरी थीं। उन्हीं बूंदों से आकाश व पृथ्वी को भयभीत करने वाला एक प्राणी प्रकट हुआ, जो देवताओं को मारने लगा। ये देखकर इंद्रलोक के सभी देवगण डरकर ब्रह्मा जी की शरण में पहुंचे। ब्रह्माजी ने देवताओं को उस पुरुष से डरने की बजाय औंधे मुंह गिराकर उस पर बैठने की सलाह दी। देवताओं ने वैसा ही किया। सभी ने मिलकर उस प्राणी को उल्टा गिराकर सभी उस पर बैठ गए। जब ब्रह्मा जी वहां पहुंचे तो उस पुरुष ने ब्रह्मा जी से प्रार्थना कर अपना दोष व देवताओं के साथ किए जाने वाले व्यवहार के बारे में पूछा।
इस पर ब्रह्मा जी ने उन्हें क्षमा करते हुए वास्तु देवता घोषित कर दिया। आशीर्वाद दिया कि किसी भी घर, गांव, नगर, दुर्ग, मंदिर, बाग आदि के निर्माण के अवसर पर देवताओं के साथ उसकी भी पूजा की जाएगी। जो ऐसा नहीं करेगा, उस व्यक्ति के जीवन में बाधाएं आती रहेंगी। दरिद्रता के साथ वह अकाल मृत्यु को प्राप्त होगा। तभी से वास्तु देवता को भूमि व भवन के देवता के रूप में पूजा जाता है। बता दें कि वास्तु देव का वास हर भूमि पर माना गया है। पुराण व वास्तु शास्त्र के अनुसार उनका सिर ईशान कोण यानी उत्तर-पूर्व, हाथ उत्तर व पूर्व दिशा तथा पैर नैऋत्य कोण यानी दक्षिण- पश्चिम दिशा में है। इन्हीं दिशाओं को ध्यान में रखते हुए वास्तु पुरुष की पूजा व वास्तु दोषों को दूर किया जाता है।