स्वच्छता के प्रति जागरूक करने, शौचालयों की साफ सफाई रखने के साथ-साथ सफाई कर्मियों की ट्रेनिंग के अलावा आमजन की मानसिकता को बदलने की दिशा में काम करना बेहद जरूरी है.
Jaipur: आम जनजीवन में अच्छे रहन सहन के साथ बेहतर स्वच्छता का होना भी जरूरी माना जाता है. अगर यह सही नहीं होगा तो पूरे समाज पर इसका बुरा प्रभाव देखा जा सकता है. खराब स्वच्छता का बुरा असर स्वयं के साथ-साथ परिवार के स्वास्थ्य पर भी भारी पड़ता है. शौचालयों की बुरी हालत, और साफ-सफाई के प्रति लापरवाही कई बीमारियों की चपेट में ले आती है. शौचालयों (Community Toilets) की खराब स्थिति बीमारियों को आसानी से फैलने में बड़ी मददगार हो सकती है. साथ ही ठहरा हुआ पानी जलजनित बीमारियों को बढ़ाने में वरदान साबित हो सकता है. इतना नहीं गैर-उपचारित कचरा तो जमीन और पानी दोनों को दूषित कर देता है जिससे पूरा समुदाय बीमारियों की चपेट में आ जाता है.
देखा जाए तो स्वच्छता की शुरुआत घर से होती है, लेकिन यह यहीं खत्म नहीं हो जाती है. हम भले ही साफ-सुथरे शौचालय वाली हाउसिंग सोसाइटी में रह रहे होते हैं. लेकिन उससे होने वाली बीमारियां हमारे दरवाजे पर नहीं रुकती हैं. इसकी एक बड़ी वजह यह होती है कि हम उस समुदाय के अन्य लोगों के साथ भी रहते हैं जो खराब स्वच्छता सुविधाओं के साथ घटिया आवासों में रह रहे होते हैं. ऐसे में हम इससे होने वाली बीमारियों से बच नहीं पाते हैं. जिन नलों में पानी आता है वो कम्युनल सोर्सेज से आता है. हम उसी जमीन पर ही रहते हैं जहां पर बाकी लोग भी उसी हवा में सांस लेते हैं. यह समस्या गांवों की तुलना में महानगरीय शहरों में ज्यादा देखने को मिलती है जोकि घनी आबादी वाले हैं. इसके चलते बीमारियां व समस्या घनी आबादी वाले क्षेत्रों में ज्यादा बढ़ जाती है. इसका बड़ा उदाहरण कोविड-19 महामारी के दौरान देखा गया जब शहरों में ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में संक्रमण और रिस्क रेट बहुत अधिक था.
स्वच्छता का पहला कदम बीमारियों की चपेट में आने से बचा सकता है
अस्वच्छता और सामान्य रोग के अलावा जलजनित बीमारियों को समझना जरूरी है. यह जानना जरूरी है कि यह बीमारियां कहां से उत्पन्न होती हैं. इसलिए इनको ठीक से समझने के लिए स्वच्छता की जरूरत को समझना होगा. अगर स्वच्छता रहेगी तो इन बीमारियां से कोसो दूर रहा जा सकता है. स्वच्छता का पहला कदम इन बीमारियों की चपेट में आने से बचा सकता है.
दूषित भोजन या पानी के सेवन के कारण बच्चे होते हैं बीमार
भारत में, बच्चे अभी भी डायरिया, हैजा, टाइफाइड, अमीबिक पेचिश, हेपेटाइटिस ए, शिगेलोसिस, जिआर्डियासिस और कई अन्य बीमारियों के शिकार होते हैं. इनमें से हर एक बीमारी दूषित भोजन या पानी के सेवन के कारण होती है, जो शरीर के अंदर बैक्टीरिया के संक्रमण का कारण बनती है. इस तरह की बीमारियां वहां ज्यादा तेजी के साथ घर कर लेती हैं जिस जगह समुदायिक क्षेत्रों में शौचालय की सफाई एक बड़ी समस्या है.
इसके अलावा वहां भी यह बीमारियां तेजी से फैलती हैं जहां नगरपालिका के कचरे जिसमें शौचालय के कचरे को गैर-उपचारित भूमि और पानी के ढेर में प्रवाहित कर किया जाता है. हैजा रोग तेजी से बढ़ता है, और कुछ घंटों में घातक हो सकता है. टाइफाइड बुखार 3-4 सप्ताह तक रह सकता है. हेपेटाइटिस ए वाला भी व्यक्ति 3 महीने के बाद महत्वपूर्ण देखभाल और पोषण के बाद बेहतर महसूस करता है.
शौचालय की साफ-सफाई, आदतों में सुधार एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग को रोकेगा
एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग को बढ़ने से रोका जाना संभव है. इसे रोकने के लिए, शौचालय की साफ-सफाई और आदतों में सुधार लाना होगा. इससे रोके जा सकने वाले संक्रमणों के लिए रोगाणुरोधी के अनावश्यक उपयोग को कम किया जा सकता है. खराब शौचालय को स्वच्छ रखना और अपनी लापरवाही वाली आदतों को बदलकर ऐसा किया जा सकता है. हैरान करने वाली बात यह है कि 5 साल से कम उम्र के बच्चे जिनमें संक्रमण से लड़ने की बहुत कम क्षमता होती है वो इन अस्वच्छ और गंदे टॉयलेट्स आदि का खामियाजा भुगतते हैं. जलजनित बीमारी जैसे दस्त आदि के बार-बार होने से उनकी आंत कमजोर हो जाती हैं और उनके बढ़ने व पनपने में बाधा उत्पन्न करती हैं. वैश्विक स्तर पर 5 साल से कम उम्र के करीब एक चौथाई बच्चों को ज्यादा नुकसान होता है.
इतना ही नहीं स्वच्छ शौचालय तक महिलाओं की पहुंच नहीं होना भी उनको कई बीमारियों की चपेट में ले आता है. महिलाओं में प्री-एक्लेमप्सिया, गर्भपात और एनीमिया का खतरा बढ़ने की ज्यादा आशंका होती है. वहीं बहुत जल्दी शौचालय चले जाने की वजह से महिलाओं को कई कारणों से अंगों पर आंतरिक दबाव व तनाव भी झेलना पड़ता है. इससे उनको गुर्दे की समस्या पैदा हो सकती है. वहीं, मासिक धर्म वाली महिलाओं के लिए स्वच्छ शौचालयों तक पहुंच नहीं होना उनको कई और दूसरी शारीरिक समस्याओं व परेशानियों में जकड़ लेता है.
स्वच्छ शौचालय को लेकर साझा जिम्मेदारी होना जरूरी
सार्वजनिक और सामान्य शौचालय सुविधाओं को समुदाय से जोड़कर देखा जाता है. लेकिन एक साझा जिम्मेदारी होने के बावजूद यह किसी की जिम्मेदारी नहीं बनती है. आमतौर पर ये सुविधाएं इतनी गंदी और खराब ढंग से प्रबंधित होती हैं कि लोग इनका उपयोग करना तक बंद कर देते हैं. इन टॉयलेट्स को ज्यादा साफ और स्वच्छ रखने के लिए सफाईकर्मियों की ज्यादा जरूरत होती है. लेकिन इस पेशे के लिए लोगों को ज्यादा आकर्षित नहीं किया जा सकता क्योंकि इस समाज को नीची नजर से देखा जाता है. और यह कार्य बेहद जोखिम भरा भी होता है. इनको जोखिम से बचाने के लिए भी सुरक्षात्मक उपकरण/सामान भी मुहैया नहीं कराए जाते हैं.